मंत्री की कथित ‘अश्लील सीडी’ का विदिशा कनेक्शन
लक्ष्मीकांत शर्मा, राघवजी ने भी खोया था मंत्री पद, एक और मंत्री विवादों में बदलते सियासी परिदृश्य में भोपाल से लेकर आसपास के क्षेत्रों में बहुत कुछ बदलाव देखने को मिला लेकिन इस दौरान राजधानी से लगे विदिशा की पहचान हिंदू महासभा से लेकर संघ, जनसंघ और अब भाजपा के दौर में भी उसे हिंदुत्व के गढ़ के तौर पर पहचाना जाता रहा है। जिस विदिशा को प्रदेश से लेकर देश में लंबे समय तक कांग्रेस का राज रहते खासतौर से जनसंघ से लेकर भाजपा अपना गढ़ साबित करती रही। आज भी वहां बीजेपी का कमल खिल रहा है लेकिन यदि इन दिनों चर्चा है तो इस क्षेत्र के नेताओं के विवादित होने के कारण ज्यादा। विदिशा संसदीय क्षेत्र पर दिल्ली की भी पैनी नजर रही है तो इस लोकसभा क्षेत्र में विदिशा जिले की राजनीति ने भी बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं चाहे फिर वह करीब पिछले डेढ़ दशक के दौरान भाजपा के सत्ता में रहते तत्कालीन मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा का व्यापम कांड में उलझना और फिर चुनाव हार जाना या फिर मंत्री रहते कथित अश्लील सीडी के चलते पार्टी के सबसे सीनियर अनुभवी नेताओं में शुमार राघवजी का कथित अश्लील सीडी कनेक्शन जिसके कारण उन्हें भी कैबिनेट से बाहर जाना पड़ा । इन दिनों शिवराज कैबिनेट के जिस एक मंत्री की अश्लील सीडी को लेकर कुछ ज्यादा ही चर्चा जोर पकड़ रही उसका भी विदिशा कनेक्शन ने भाजपा की अंदरूनी राजनीति में मानो भूचाल ला दिया है। ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है कि जिस विदिशा को सुरक्षित मानकर जनसंघ से लेकर भाजपा के लंबे राजनीतिक सफर के दौरान जगन्नाथ राव जोशी से लेकर रामनाथ गोयनका, अटलबिहारी वाजपेयी और सुषमा स्वराज जैसे दिग्गजों के नेतृत्व के साथ खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने क्षेत्र के सांसद रहते विदिशा को नई दिशा दी आखिर उसे किसकी नजर लग गई जो अब चर्चा जनप्रतिनिधियों की बदनामी और उपेक्षा से जोड़कर की जाने लगी है।
विदिशा संसदीय क्षेत्र सिर्फ मध्यप्रदेश के लिए ही नहीं बल्कि दिल्ली में बैठे भाजपा नेताओं के लिए भी काफी मुफीद साबित होता रहा है। इस संसदीय क्षेत्र की विधानसभा सीटों का भूगोल बदलता रहा लेकिन इतिहास हिंदुत्व के गढ़ के तौर पर दोहराता रहा है ।जो समीपवर्ती दूसरे जिलों और संसदीय क्षेत्र को प्रभावित करता रहा है.. बावजूद इसके विदिशा जिले की राजनीति ने इस संसदीय क्षेत्र को हमेशा एक नई दिशा दी है। विदिशा संसदीय क्षेत्र की राजनीति के जो कई ऐंगल रहे हैं उसने भाजपा की अंदरूनी सियासत कभी राघवजी तो स्वर्गीय गुरचरण सिंह, शिवराज सिंह चौहान, लक्ष्मीकांत शर्मा और सुषमा स्वराज से जुड़ते रहे हैं। 1962 में पहली बार विधायक बनने वाले राघवजी इसी क्षेत्र से लोकसभा के 2 चुनाव जीते तो दो हारे भी। राघवजी ने अपने समाज खासतौर से वैश्य वोटों का ध्रुवीकरण कर भाजपा को ताकत दी तो गुरचरण सिंह विधायक रहते उद्योगपति के तौर पर भाजपा के लिए आर्थिक मददगार साबित होते रहे। यह वह दौर था जब जनसंघ से लेकर बीजेपी आर्थिक ,प्रबंधन के मोर्चे पर दूसरों की सहायता पर निर्भर रहती थी। क्षेत्र के पांच बार सांसद रहते शिवराज सिंह चौहान की सबसे गहरी जड़ें दूसरे नेताओं के मुकाबले साबित हुई जिन्होंने पिछड़े वर्ग के साथ दूसरे समुदाय को भी भाजपा से जोड़ा चाहे फिर वह लोकसभा सांसद रहते या फिर बुधनी और विदिशा से विधायक रहते। शिवराज इस क्षेत्र की राजनीति के सबसे बड़े सितारे बनकर सामने आए। अटल-आडवाणी की बीजेपी के दौरान शिवराज सिंह चौहान को भरोसे में लेकर सुषमा स्वराज ने विदिशा से लोकसभा का चुनाव जरूर जीता लेकिन क्षेत्र और प्रदेश की राजनीति में सीमित दिलचस्पी ही दिखाई। उस दौर में क्षेत्र का सांसद रहते सुषमा को यदि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने का मौका मिला तो नरेंद्र मोदी की एंट्री यानी पीएम इन वेटिंग घोषित होने से पहले सुषमा भी पीएम के दावेदारों में गिनी जाती रहीं। इस बीच में मंत्री रहते लक्ष्मीकांत शर्मा भी विदिशा की राजनीति में ब्राह्मण समर्थक नेता बनकर उभरे। फिलहाल सुषमा और शिवराज की क्षेत्र में लोकप्रियता और पकड़ जगजाहिर है तो राघवजी से लेकर लक्ष्मीकांत शर्मा हासिये पर पहुंच चुके हैं।देश की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज लोकसभा में इसी विदिशा संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रही हैं तो इससे पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बतौर सांसद लोकसभा में लंबे समय तक कई चुनाव जीतकर विदिशा की अगुवाई की। पिछले करीब डेढ़ दशक में मध्यप्रदेश की सत्ता में रहते इस सीट से वर्तमान मंत्री रामपाल सिंह लोकसभा चुनाव जीत चुके तो चर्चा चुनाव लड़ने को लेकर कभी वरुण गांधी तो कभी मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी साधना सिंह की दावेदारी की भी खूब होती रही है। सुषमा स्वराज ने 2009 में पहला लोकसभा का चुनाव इस विदिशा से लड़ा और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की कमान संभाली। अब जबकि मोदी प्रधानमंत्री हैं पीएम इन वेटिंग की दौड़ में भी शामिल रही सुषमा देश की विदेश मंत्री के तौर पर बड़ी जिम्मेदारी निभा रही हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री और हरियाणा में सबसे कम उम्र की महिला मंत्री रह चुकी सुषमा स्वराज लंबे समय तक राज्यसभा में रहने के बाद लोकसभा में पहुंचने के लिए विदिशा को सुरक्षित सीट मानकर यहां आई थीं। तो इससे पहले मुख्यमंत्री बनने से पहले शिवराज सिंह चौहान ने भी लगातार लोकसभा के कई चुनाव विदिशा से जीते। 1991 में अटलबिहारी वाजपेयी ने भी सुरक्षित सीट को ध्यान में रखते हुए जिन 2 लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ा था उसमें विदिशा शामिल थी तो इससे और पहले जनसंघ के दौर में भी रामनाथ गोयनका को यहाँ भेजा गया था तो जगन्नाथ राव जोशी जैसे नेता को भी इस क्षेत्र की जनता ने सिर माथे पर बैठाकर चुनाव जिताया। ऐसी जानी-मानी हस्तियों के कारण विदिशा देश की राजनीति में हमेशा सुर्खियों में बना रहा। वजह हिंदुत्व का गढ़ होना भी रहा खासतौर से भोपाल, रायसेन, सीहोर जैसे आसपास के जिलों की तुलना में विदिशा को हिंदुत्व के पैरोकारों ने अपनी जड़े जमा कर एक नई पहचान दी। एक दौर था जब इस संसदीय क्षेत्र विदिशा को सबसे सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र में गिना जाता था लेकिन अब इस विदिशा की चर्चा बीजेपी की अंदरूनी राजनीति में मची उठापटक से लेकर जिन दूसरे कारणों से होती है उसमें चर्चा विवादों को लेकर ज्यादा है। प्रदेश की सत्ता में रहते सिरोंज से विधायक और मंत्री बन चुके लक्ष्मीकांत शर्मा को यदि चुनाव हारना पड़ा तो व्यापम के झमेले में उलझने के कारण राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा। राघवजी भाजपा सरकार के सबसे योग्य, अनुभवी, पुरानी पीढ़ी के वित्त मंत्री को भी कथित अश्लील सीडी के एक विवादास्पद मामले में मंत्री की कुर्सी ही नहीं गंवानी पड़ी बल्कि उस भाजपा से बाहर जाना पड़ा जिससे वह जनसंघ से लेकर इस लंबी यात्रा में जुड़े रहे और इस क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके। क्षेत्र के दूसरे नेता स्व. गुरचरण सिंह पहले ही अलग-थलग पड़ चुके थे तो हरि सिंह रघुवंशी जैसे नेताओं की भी पूछपरख कम होती गई। अब जबकि मिशन 2018 के साथ 2019 लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर भी भाजपा को जिताऊ और गैर विवादित उम्मीदवारों की तलाश है तब कथित अश्लील सीडी के नए मामले ने जिस एक और मंत्री को विवादों के घेरे में ला दिया है उसका विदिशा कनेक्शन भी चर्चा में है। राजधानी से प्रकाशित सुबह और दोपहर के अखबार ने बिना नाम लिए जिस मंत्री को अश्लील कांड से जोड़ कर पेश किया उसके तार कहीं-न-कहीं विदिशा क्षेत्र से जुड़ रहे हैं जो दूसरे जिले के प्रभारी रहते विवादों में आ गए हैं ।मंत्री के साथ एक युवा नेत्री का नाम जोड़ा जा रहा है। इसके पीछे भाजपा की अंदरूनी राजनीति से इनकार नहीं किया जा सकता है। चर्चा तो यह भी है कि पार्टी के कुछ नेताओं और कार्यकर्ताओं ने सुनियोजित तरीके से एक सरकारी गेस्ट हाउस में हिडन कैमरे की मदद से उन्हें आपत्तिजनक स्थिति में कैद कर लिया था। इस महिला को दूसरे राजनीतिक दल से मंत्री के प्रभाव के चलते ही भाजपा में लाया गया था। जिन्हें उनके साथ अक्सर कई फोरम पर देखा गया। इस सीडी के जरिए मंत्री को ब्लैकमेलिंग करने की भी खबर है तो मंत्री विरोधी खेमे ने उनकी करतूतों से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी अवगत करा दिया है। इन दिनों सोशल मीडिया पर भी यह मामला छाया हुआ है। इस अश्लील सीडी प्रकरण को पूर्व मंत्री राघवजी से जोड़कर देखा जा रहा है जिसके बाद उनकी कुर्सी चली गई थी। भाजपा के एक वरिष्ठ राष्ट्रीय नेता की सीडी की यादें ताजा हो गई हैं जिसका मध्यप्रदेश कनेक्शन खूब चर्चा में रहा। इससे पहले संगठन के कुछ पदाधिकारी भी इस तरह के विवादों में आ चुके हैं। अब जबकि शिवराज मंत्रिमंडल के विस्तार की चर्चा जोरों पर है तब इस कथित अश्लील सीडी कांड ने मंत्री को निशाने पर ला दिया है। तो सवाल चाल, चरित्र, चेहरे के जुमले वाली भाजपा की अंदरूनी राजनीति और उठापटक की ज्यादा है।
बॉक्स नंबर-1
अरुण जेटली की भी विदिशा पर नजर!
विदिशा को हिंदुत्व का गढ़ तो संघ की विचारधारा से भी जोड़कर देखा जाता रहा है। इसका फायदा जनसंघ से लेकर भाजपा उठाती रही है। वर्तमान में क्षेत्र की सांसद सुषमा स्वराज की तबीयत बिगड़ जाने के बाद क्षेत्र में इस बात के भी कयास लगाए जाने लगे थे कि शायद वो शायद अब अगला लोकसभा का चुनाव न लड़ें, क्योंकि पिछले करीब 2 साल से वे विदिशा क्षेत्र का दौरा नहीं कर पा रही हैं। लंबी बीमारी के बाद भी और उससे पहले भी क्षेत्र के विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता निभाने के लिए वो राजधानी भोपाल स्थित आवास पर ही बैठकों का दौर विधानसभा स्तर की करती रही हैं। अब खबर यह आ रही है कि स्वास्थ्य बेहतर होने के बाद वह जल्द विदिशा पहुंचेंगी। अंतिम बार राष्ट्रपति चुनाव के दौरान वह भोपाल आई थीं। मोदी और शाह ने जब भाजपा की दशा और उसकी दिशा बदल दी है तो इस बात की भी चर्चा जोर पकड़ रही है कि अगला लोकसभा चुनाव आते तक सुषमा स्वराज किसी नई और बड़ी भूमिका में नजर आ सकती हैं। ऐसे में यदि विदिशा सीट खाली होगी तो इसके दावेदारों की कमी नहीं होगी। पिछले दिनों क्षेत्र में इस बात की भी चर्चा रही कि दिल्ली के किसी दूसरे नेता ने भी व्यक्तिगत स्तर पर विदिशा संसदीय क्षेत्र थाह ली है। अपुष्ट सूत्रों के मुताबिक चाहे वह निजी सर्वे एजेंसी की मदद से या फिर अपने व्यक्तिगत नेटवर्क के जरिए अरुण जेटली के नाम से जोड़कर देखा गया। जो लोकसभा का पिछला चुनाव पंजाब से हार गए थे फिलहाल गुजरात से राज्यसभा सांसद हैं। इससे पहले राजस्थान की किसी सीट से भी उनके चुनाव लड़ने की चर्चा रही है। दिल्ली से दूर अरुण जेटली के लिए विदिशा मुफीद साबित हो सकती है बशर्ते सुषमा स्वराज अपना दावा छोड़ दें और इस क्षेत्र के सरताज शिवराज सिंह चौहान को भरोसे में लिया जा सके। क्योंकि उस वक्त यदि विधानसभा के साथ लोकसभा के चुनाव भी होते हैं तो भाजपा की अंदरूनी राजनीति क्या गुल खिलाएगी इसका आंकलन अभी कर पाना मुश्किल है।
बॉक्स नंबर 2
बीजेपी संगठन का भी विदिशा कनेक्शन चर्चा में
विदिशा जिले की राजनीति में अश्लील सीडी कनेक्शन में उलझे एक मंत्री की चर्चा के बीच भाजपा के दो दूसरे जिम्मेदार पदाधिकारियों को लेकर भी क्षेत्र के कार्यकर्ता खुसुर-फुसुर करते नजर आ रहे हैं। मंत्री कनेक्शन में जिस महिला का नाम सामने आ रहा है उसका पुराना नाता भाजपा से नहीं रहा। इधर संगठन की राजनीति में कुरवाई कनेक्शन भी चर्चा में है जिसके तार संगठन के जिले के पदाधिकारी के साथ संघ की पृष्ठभूमि वाले एक जिम्मेदार नेता से भी जोड़े जा रहे हैं। भाजपा की अंदरूनी राजनीति में इस क्षेत्र की नब्ज पहचानने वाले और दबदबा रखने वाले बड़े नेता को इग्नोर करके कुछ पद ऐसे नेताओं ने हासिल किए हैं तो उसके पीछे भी कुछ ऐसी ही कहानी सुनने को मिल रही है। इसके तार विदिशा क्षेत्र की राजनीति से बाहर दूसरे क्षेत्र से भी जुड़ रहे हैं, जिसे नया पड़ाव बना लिया गया लेकिन पुराने रिश्ते भारी साबित हो रहे। वह भी तब जब जिम्मेदार नेता पार्टी के कार्यकर्ताओं को अपराधी व्यक्ति की पृष्ठभूमि के साथ चाल, चरित्र और चेहरे को लेकर सावधान करते रहे हैं।
लक्ष्मीकांत शर्मा, राघवजी ने भी खोया था मंत्री पद, एक और मंत्री विवादों में बदलते सियासी परिदृश्य में भोपाल से लेकर आसपास के क्षेत्रों में बहुत कुछ बदलाव देखने को मिला लेकिन इस दौरान राजधानी से लगे विदिशा की पहचान हिंदू महासभा से लेकर संघ, जनसंघ और अब भाजपा के दौर में भी उसे हिंदुत्व के गढ़ के तौर पर पहचाना जाता रहा है। जिस विदिशा को प्रदेश से लेकर देश में लंबे समय तक कांग्रेस का राज रहते खासतौर से जनसंघ से लेकर भाजपा अपना गढ़ साबित करती रही। आज भी वहां बीजेपी का कमल खिल रहा है लेकिन यदि इन दिनों चर्चा है तो इस क्षेत्र के नेताओं के विवादित होने के कारण ज्यादा। विदिशा संसदीय क्षेत्र पर दिल्ली की भी पैनी नजर रही है तो इस लोकसभा क्षेत्र में विदिशा जिले की राजनीति ने भी बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं चाहे फिर वह करीब पिछले डेढ़ दशक के दौरान भाजपा के सत्ता में रहते तत्कालीन मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा का व्यापम कांड में उलझना और फिर चुनाव हार जाना या फिर मंत्री रहते कथित अश्लील सीडी के चलते पार्टी के सबसे सीनियर अनुभवी नेताओं में शुमार राघवजी का कथित अश्लील सीडी कनेक्शन जिसके कारण उन्हें भी कैबिनेट से बाहर जाना पड़ा । इन दिनों शिवराज कैबिनेट के जिस एक मंत्री की अश्लील सीडी को लेकर कुछ ज्यादा ही चर्चा जोर पकड़ रही उसका भी विदिशा कनेक्शन ने भाजपा की अंदरूनी राजनीति में मानो भूचाल ला दिया है। ऐसे में सवाल खड़ा होना लाजमी है कि जिस विदिशा को सुरक्षित मानकर जनसंघ से लेकर भाजपा के लंबे राजनीतिक सफर के दौरान जगन्नाथ राव जोशी से लेकर रामनाथ गोयनका, अटलबिहारी वाजपेयी और सुषमा स्वराज जैसे दिग्गजों के नेतृत्व के साथ खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने क्षेत्र के सांसद रहते विदिशा को नई दिशा दी आखिर उसे किसकी नजर लग गई जो अब चर्चा जनप्रतिनिधियों की बदनामी और उपेक्षा से जोड़कर की जाने लगी है।
विदिशा संसदीय क्षेत्र सिर्फ मध्यप्रदेश के लिए ही नहीं बल्कि दिल्ली में बैठे भाजपा नेताओं के लिए भी काफी मुफीद साबित होता रहा है। इस संसदीय क्षेत्र की विधानसभा सीटों का भूगोल बदलता रहा लेकिन इतिहास हिंदुत्व के गढ़ के तौर पर दोहराता रहा है ।जो समीपवर्ती दूसरे जिलों और संसदीय क्षेत्र को प्रभावित करता रहा है.. बावजूद इसके विदिशा जिले की राजनीति ने इस संसदीय क्षेत्र को हमेशा एक नई दिशा दी है। विदिशा संसदीय क्षेत्र की राजनीति के जो कई ऐंगल रहे हैं उसने भाजपा की अंदरूनी सियासत कभी राघवजी तो स्वर्गीय गुरचरण सिंह, शिवराज सिंह चौहान, लक्ष्मीकांत शर्मा और सुषमा स्वराज से जुड़ते रहे हैं। 1962 में पहली बार विधायक बनने वाले राघवजी इसी क्षेत्र से लोकसभा के 2 चुनाव जीते तो दो हारे भी। राघवजी ने अपने समाज खासतौर से वैश्य वोटों का ध्रुवीकरण कर भाजपा को ताकत दी तो गुरचरण सिंह विधायक रहते उद्योगपति के तौर पर भाजपा के लिए आर्थिक मददगार साबित होते रहे। यह वह दौर था जब जनसंघ से लेकर बीजेपी आर्थिक ,प्रबंधन के मोर्चे पर दूसरों की सहायता पर निर्भर रहती थी। क्षेत्र के पांच बार सांसद रहते शिवराज सिंह चौहान की सबसे गहरी जड़ें दूसरे नेताओं के मुकाबले साबित हुई जिन्होंने पिछड़े वर्ग के साथ दूसरे समुदाय को भी भाजपा से जोड़ा चाहे फिर वह लोकसभा सांसद रहते या फिर बुधनी और विदिशा से विधायक रहते। शिवराज इस क्षेत्र की राजनीति के सबसे बड़े सितारे बनकर सामने आए। अटल-आडवाणी की बीजेपी के दौरान शिवराज सिंह चौहान को भरोसे में लेकर सुषमा स्वराज ने विदिशा से लोकसभा का चुनाव जरूर जीता लेकिन क्षेत्र और प्रदेश की राजनीति में सीमित दिलचस्पी ही दिखाई। उस दौर में क्षेत्र का सांसद रहते सुषमा को यदि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने का मौका मिला तो नरेंद्र मोदी की एंट्री यानी पीएम इन वेटिंग घोषित होने से पहले सुषमा भी पीएम के दावेदारों में गिनी जाती रहीं। इस बीच में मंत्री रहते लक्ष्मीकांत शर्मा भी विदिशा की राजनीति में ब्राह्मण समर्थक नेता बनकर उभरे। फिलहाल सुषमा और शिवराज की क्षेत्र में लोकप्रियता और पकड़ जगजाहिर है तो राघवजी से लेकर लक्ष्मीकांत शर्मा हासिये पर पहुंच चुके हैं।देश की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज लोकसभा में इसी विदिशा संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रही हैं तो इससे पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बतौर सांसद लोकसभा में लंबे समय तक कई चुनाव जीतकर विदिशा की अगुवाई की। पिछले करीब डेढ़ दशक में मध्यप्रदेश की सत्ता में रहते इस सीट से वर्तमान मंत्री रामपाल सिंह लोकसभा चुनाव जीत चुके तो चर्चा चुनाव लड़ने को लेकर कभी वरुण गांधी तो कभी मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी साधना सिंह की दावेदारी की भी खूब होती रही है। सुषमा स्वराज ने 2009 में पहला लोकसभा का चुनाव इस विदिशा से लड़ा और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की कमान संभाली। अब जबकि मोदी प्रधानमंत्री हैं पीएम इन वेटिंग की दौड़ में भी शामिल रही सुषमा देश की विदेश मंत्री के तौर पर बड़ी जिम्मेदारी निभा रही हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री और हरियाणा में सबसे कम उम्र की महिला मंत्री रह चुकी सुषमा स्वराज लंबे समय तक राज्यसभा में रहने के बाद लोकसभा में पहुंचने के लिए विदिशा को सुरक्षित सीट मानकर यहां आई थीं। तो इससे पहले मुख्यमंत्री बनने से पहले शिवराज सिंह चौहान ने भी लगातार लोकसभा के कई चुनाव विदिशा से जीते। 1991 में अटलबिहारी वाजपेयी ने भी सुरक्षित सीट को ध्यान में रखते हुए जिन 2 लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ा था उसमें विदिशा शामिल थी तो इससे और पहले जनसंघ के दौर में भी रामनाथ गोयनका को यहाँ भेजा गया था तो जगन्नाथ राव जोशी जैसे नेता को भी इस क्षेत्र की जनता ने सिर माथे पर बैठाकर चुनाव जिताया। ऐसी जानी-मानी हस्तियों के कारण विदिशा देश की राजनीति में हमेशा सुर्खियों में बना रहा। वजह हिंदुत्व का गढ़ होना भी रहा खासतौर से भोपाल, रायसेन, सीहोर जैसे आसपास के जिलों की तुलना में विदिशा को हिंदुत्व के पैरोकारों ने अपनी जड़े जमा कर एक नई पहचान दी। एक दौर था जब इस संसदीय क्षेत्र विदिशा को सबसे सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र में गिना जाता था लेकिन अब इस विदिशा की चर्चा बीजेपी की अंदरूनी राजनीति में मची उठापटक से लेकर जिन दूसरे कारणों से होती है उसमें चर्चा विवादों को लेकर ज्यादा है। प्रदेश की सत्ता में रहते सिरोंज से विधायक और मंत्री बन चुके लक्ष्मीकांत शर्मा को यदि चुनाव हारना पड़ा तो व्यापम के झमेले में उलझने के कारण राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा। राघवजी भाजपा सरकार के सबसे योग्य, अनुभवी, पुरानी पीढ़ी के वित्त मंत्री को भी कथित अश्लील सीडी के एक विवादास्पद मामले में मंत्री की कुर्सी ही नहीं गंवानी पड़ी बल्कि उस भाजपा से बाहर जाना पड़ा जिससे वह जनसंघ से लेकर इस लंबी यात्रा में जुड़े रहे और इस क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके। क्षेत्र के दूसरे नेता स्व. गुरचरण सिंह पहले ही अलग-थलग पड़ चुके थे तो हरि सिंह रघुवंशी जैसे नेताओं की भी पूछपरख कम होती गई। अब जबकि मिशन 2018 के साथ 2019 लोकसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर भी भाजपा को जिताऊ और गैर विवादित उम्मीदवारों की तलाश है तब कथित अश्लील सीडी के नए मामले ने जिस एक और मंत्री को विवादों के घेरे में ला दिया है उसका विदिशा कनेक्शन भी चर्चा में है। राजधानी से प्रकाशित सुबह और दोपहर के अखबार ने बिना नाम लिए जिस मंत्री को अश्लील कांड से जोड़ कर पेश किया उसके तार कहीं-न-कहीं विदिशा क्षेत्र से जुड़ रहे हैं जो दूसरे जिले के प्रभारी रहते विवादों में आ गए हैं ।मंत्री के साथ एक युवा नेत्री का नाम जोड़ा जा रहा है। इसके पीछे भाजपा की अंदरूनी राजनीति से इनकार नहीं किया जा सकता है। चर्चा तो यह भी है कि पार्टी के कुछ नेताओं और कार्यकर्ताओं ने सुनियोजित तरीके से एक सरकारी गेस्ट हाउस में हिडन कैमरे की मदद से उन्हें आपत्तिजनक स्थिति में कैद कर लिया था। इस महिला को दूसरे राजनीतिक दल से मंत्री के प्रभाव के चलते ही भाजपा में लाया गया था। जिन्हें उनके साथ अक्सर कई फोरम पर देखा गया। इस सीडी के जरिए मंत्री को ब्लैकमेलिंग करने की भी खबर है तो मंत्री विरोधी खेमे ने उनकी करतूतों से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी अवगत करा दिया है। इन दिनों सोशल मीडिया पर भी यह मामला छाया हुआ है। इस अश्लील सीडी प्रकरण को पूर्व मंत्री राघवजी से जोड़कर देखा जा रहा है जिसके बाद उनकी कुर्सी चली गई थी। भाजपा के एक वरिष्ठ राष्ट्रीय नेता की सीडी की यादें ताजा हो गई हैं जिसका मध्यप्रदेश कनेक्शन खूब चर्चा में रहा। इससे पहले संगठन के कुछ पदाधिकारी भी इस तरह के विवादों में आ चुके हैं। अब जबकि शिवराज मंत्रिमंडल के विस्तार की चर्चा जोरों पर है तब इस कथित अश्लील सीडी कांड ने मंत्री को निशाने पर ला दिया है। तो सवाल चाल, चरित्र, चेहरे के जुमले वाली भाजपा की अंदरूनी राजनीति और उठापटक की ज्यादा है।
बॉक्स नंबर-1
अरुण जेटली की भी विदिशा पर नजर!
विदिशा को हिंदुत्व का गढ़ तो संघ की विचारधारा से भी जोड़कर देखा जाता रहा है। इसका फायदा जनसंघ से लेकर भाजपा उठाती रही है। वर्तमान में क्षेत्र की सांसद सुषमा स्वराज की तबीयत बिगड़ जाने के बाद क्षेत्र में इस बात के भी कयास लगाए जाने लगे थे कि शायद वो शायद अब अगला लोकसभा का चुनाव न लड़ें, क्योंकि पिछले करीब 2 साल से वे विदिशा क्षेत्र का दौरा नहीं कर पा रही हैं। लंबी बीमारी के बाद भी और उससे पहले भी क्षेत्र के विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता निभाने के लिए वो राजधानी भोपाल स्थित आवास पर ही बैठकों का दौर विधानसभा स्तर की करती रही हैं। अब खबर यह आ रही है कि स्वास्थ्य बेहतर होने के बाद वह जल्द विदिशा पहुंचेंगी। अंतिम बार राष्ट्रपति चुनाव के दौरान वह भोपाल आई थीं। मोदी और शाह ने जब भाजपा की दशा और उसकी दिशा बदल दी है तो इस बात की भी चर्चा जोर पकड़ रही है कि अगला लोकसभा चुनाव आते तक सुषमा स्वराज किसी नई और बड़ी भूमिका में नजर आ सकती हैं। ऐसे में यदि विदिशा सीट खाली होगी तो इसके दावेदारों की कमी नहीं होगी। पिछले दिनों क्षेत्र में इस बात की भी चर्चा रही कि दिल्ली के किसी दूसरे नेता ने भी व्यक्तिगत स्तर पर विदिशा संसदीय क्षेत्र थाह ली है। अपुष्ट सूत्रों के मुताबिक चाहे वह निजी सर्वे एजेंसी की मदद से या फिर अपने व्यक्तिगत नेटवर्क के जरिए अरुण जेटली के नाम से जोड़कर देखा गया। जो लोकसभा का पिछला चुनाव पंजाब से हार गए थे फिलहाल गुजरात से राज्यसभा सांसद हैं। इससे पहले राजस्थान की किसी सीट से भी उनके चुनाव लड़ने की चर्चा रही है। दिल्ली से दूर अरुण जेटली के लिए विदिशा मुफीद साबित हो सकती है बशर्ते सुषमा स्वराज अपना दावा छोड़ दें और इस क्षेत्र के सरताज शिवराज सिंह चौहान को भरोसे में लिया जा सके। क्योंकि उस वक्त यदि विधानसभा के साथ लोकसभा के चुनाव भी होते हैं तो भाजपा की अंदरूनी राजनीति क्या गुल खिलाएगी इसका आंकलन अभी कर पाना मुश्किल है।
बॉक्स नंबर 2
बीजेपी संगठन का भी विदिशा कनेक्शन चर्चा में
विदिशा जिले की राजनीति में अश्लील सीडी कनेक्शन में उलझे एक मंत्री की चर्चा के बीच भाजपा के दो दूसरे जिम्मेदार पदाधिकारियों को लेकर भी क्षेत्र के कार्यकर्ता खुसुर-फुसुर करते नजर आ रहे हैं। मंत्री कनेक्शन में जिस महिला का नाम सामने आ रहा है उसका पुराना नाता भाजपा से नहीं रहा। इधर संगठन की राजनीति में कुरवाई कनेक्शन भी चर्चा में है जिसके तार संगठन के जिले के पदाधिकारी के साथ संघ की पृष्ठभूमि वाले एक जिम्मेदार नेता से भी जोड़े जा रहे हैं। भाजपा की अंदरूनी राजनीति में इस क्षेत्र की नब्ज पहचानने वाले और दबदबा रखने वाले बड़े नेता को इग्नोर करके कुछ पद ऐसे नेताओं ने हासिल किए हैं तो उसके पीछे भी कुछ ऐसी ही कहानी सुनने को मिल रही है। इसके तार विदिशा क्षेत्र की राजनीति से बाहर दूसरे क्षेत्र से भी जुड़ रहे हैं, जिसे नया पड़ाव बना लिया गया लेकिन पुराने रिश्ते भारी साबित हो रहे। वह भी तब जब जिम्मेदार नेता पार्टी के कार्यकर्ताओं को अपराधी व्यक्ति की पृष्ठभूमि के साथ चाल, चरित्र और चेहरे को लेकर सावधान करते रहे हैं।