वॉशिंगटन. अमेरिका की एक टॉप मैगजीन का दावा है कि नरेंद्र मोदी का नोटबंदी का फैसला हाल की इकोनॉमिक हिस्ट्री में देश को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला एक्सपेरिमेंट साबित हुआ। नोटबंदी के चलते भारत की कैश आधारित इकोनॉमी में एक ठहराव-सा आ गया। बता दें कि मोदी ने 8 नवंबर को 500-1000 के पुराने नोट बंद कर दिए थे। मोदी को सीख लेनी चाहिए...
- न्यूज एजेंसी के मुताबिक, 'फॉरेन अफेयर्स' मैगजीन के ताजा इश्यू में राइटर जेम्स क्रेबट्री ने लिखा, "डिमॉनेटाइजेशन ने साबित कर दिया कि वह सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला एक्सपेरिमेंट था। अब मोदी एडमिनिस्ट्रेशन को अपनी गलतियों से सीख लेनी चाहिए।"
- क्रेबट्री सिंगापुर में ली कुआन यू स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में सीनियर रिसर्च फेलो हैं। वे भारत में नोटबंदी की काफी आलोचना करते रहे हैं।
- क्रेबट्री लिखते हैं, "मोदी के इकोनॉमिक अचीवमेंट्स तो सही हैं, लेकिन उनके ग्रोथ लाने वाले रिफॉर्म्स ने लोगों को एक तरह से निराश किया।"
- "नोटबंदी के लिए सरकार ने जितने बड़े स्तर पर काम किया, उसने अर्थव्यवस्था पर उतना असर नहीं डाला। हालांकि, ये फैसला काफी पॉपुलर हुआ। मोदी के इस फैसले ने जीडीपी पर ज्यादा असर नहीं डाला। अगर वे 2019 के चुनावों को देख रहे हैं, तो इसके लिए उन्हें पिछले कदम से सीखने में मुश्किल नहीं आएगी।"
क्रेबटी ने और क्या लिखा?
- "सच तो ये है कि शॉर्ट टर्म ग्रोथ के लिहाज से नोटबंदी खराब रही। पिछले हफ्ते भारत ने 2017 के पहले क्वार्टर की जीडीपी के आंकड़े जारी किए। ये वही वक्त है जब नोटबंदी का सबसे ज्यादा असर पड़ा।"
- रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि नोटबंदी के चलते लाखों भारतीयों को 500-1000 रुपए के नोट बदलने के लिए बैंक की लाइन में लगना पड़ा।
- "नोटबंदी की सबसे ज्यादा मार गरीबों पर पड़ी। भारत की कैश आधारित अर्थव्यवस्था में कमर्शियल एक्टिविटीज ठप हो गईं।"
- न्यूज एजेंसी के मुताबिक, 'फॉरेन अफेयर्स' मैगजीन के ताजा इश्यू में राइटर जेम्स क्रेबट्री ने लिखा, "डिमॉनेटाइजेशन ने साबित कर दिया कि वह सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाला एक्सपेरिमेंट था। अब मोदी एडमिनिस्ट्रेशन को अपनी गलतियों से सीख लेनी चाहिए।"
- क्रेबट्री सिंगापुर में ली कुआन यू स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी में सीनियर रिसर्च फेलो हैं। वे भारत में नोटबंदी की काफी आलोचना करते रहे हैं।
- क्रेबट्री लिखते हैं, "मोदी के इकोनॉमिक अचीवमेंट्स तो सही हैं, लेकिन उनके ग्रोथ लाने वाले रिफॉर्म्स ने लोगों को एक तरह से निराश किया।"
- "नोटबंदी के लिए सरकार ने जितने बड़े स्तर पर काम किया, उसने अर्थव्यवस्था पर उतना असर नहीं डाला। हालांकि, ये फैसला काफी पॉपुलर हुआ। मोदी के इस फैसले ने जीडीपी पर ज्यादा असर नहीं डाला। अगर वे 2019 के चुनावों को देख रहे हैं, तो इसके लिए उन्हें पिछले कदम से सीखने में मुश्किल नहीं आएगी।"
क्रेबटी ने और क्या लिखा?
- "सच तो ये है कि शॉर्ट टर्म ग्रोथ के लिहाज से नोटबंदी खराब रही। पिछले हफ्ते भारत ने 2017 के पहले क्वार्टर की जीडीपी के आंकड़े जारी किए। ये वही वक्त है जब नोटबंदी का सबसे ज्यादा असर पड़ा।"
- रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि नोटबंदी के चलते लाखों भारतीयों को 500-1000 रुपए के नोट बदलने के लिए बैंक की लाइन में लगना पड़ा।
- "नोटबंदी की सबसे ज्यादा मार गरीबों पर पड़ी। भारत की कैश आधारित अर्थव्यवस्था में कमर्शियल एक्टिविटीज ठप हो गईं।"