नई दिल्ली. चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी के 21 विधायकों को ऑफिस ऑफ प्रॉफिट केस में राहत देने से इनकार कर दिया है। आयोग ने कहा है कि इन विधायकों के पास संसदीय सचिव का पद था। लिहाजा, ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का केस खारिज करने की विधायकों की अर्जी नामंजूर की जाती है। बता दें कि दिल्ली हाईकोर्ट ने ही 8 सितंबर 2016 को इन विधायकों के संसदीय सचिवों के तौर पर अप्वाइंटमेंट को रद्द कर दिया था। इनकी विधायकी खत्म करने की मांग पर चुनाव आयोग में सुनवाई चल रही है। अगली सुनवाई अगस्त में हो सकती है।
क्या है मामला
- दिल्ली विधानसभा में 70 में से 67 सीटों पर आम आदमी पार्टी के विधायक चुनकर आए थे। 13 मार्च 2015 को केजरीवाल सरकार ने अपने 21 विधायकों को पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी अप्वाइंट किया था।
- राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा के प्रेसिडेंट रवींद्र कुमार ने दिल्ली हाईकोर्ट में इन अप्वाइंटमेंट्स के खिलाफ पिटीशन दायर की थी। कुमार का कहना था कि ये अप्वाइंटमेंट्स गैरकानूनी हैं। सीएम के पास ऐसी नियुक्तियाें का अधिकार नहीं है।
- दिल्ली के एक एडवोकेट प्रशांत पटेल ने 19 जून 2015 को प्रेसिडेंट के पास पिटीशन फाइल की थी। इसमें विधायकों की बतौर पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी नियुक्ति को ऑफिस ऑफ प्रॉफिट (लाभ के पद) का मामला बताया था। पटेल ने इन 21 MLAs की मेंबरशिप रद्द करने की मांग की थी।
कब बिल लाई थी सरकार?
- इन अप्वाइंटमेंट्स पर विवाद बढ़ने के बाद दिल्ली सरकार 23 जून, 2015 को दिल्ली असेंबली में ऑफिस ऑफ प्रॉफिट एक्ट में अमेंडमेंट बिल लाई। इसे बिना बहस के पास करा लिया गया।
- बिल पास करा कर 24 जून 2015 को इसे लेफ्टिनेंट जनरल नजीब जंग के पास भेज दिया गया।
इसके बाद क्या हुआ?
- एलजी ने इस अमेंडमेंट बिल को प्रेसिडेंट के पास भेजा। प्रेसिडेंट ने इलेक्शन कमीशन से राय मांगी। इलेक्शन कमीशन ने पिटीशन लगाने वाले एडवोकेट से अपना जवाब दाखिल करने को कहा।
- जवाब में प्रशांत पटेल ने 100 पेज का जवाब दिया और बताया कि मेरे पिटीशन फाइल किए जाने के बाद असंवैधानिक तरीके से बिल लाया गया। इलेक्शन कमीशन एडवोकेट के जवाब से सैटिस्फाइ हुआ। इसके बाद प्रेसिडेंट ने बिल लौटा दिया।
दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या कहा था?
सितंबर 2016 के अपने फैसले में हाईकोर्ट ने इन अप्वाइंटमेंट्स को रद्द कर दिया।कोर्ट ने अपने ऑर्डर में कहा कि नियमों को ताक पर रख कर ये अप्वाइंटमेंट्स किए गए थे।
ऑफिस ऑफ प्रॉफिट क्या होता है?
- कॉन्स्टिट्यूशन के आर्टिकल 102 (1) (ए) के तहत सांसद या विधायक ऐसे किसी और पद पर नहीं हो सकता, जहां अलग से सैलरी, अलाउंस या बाकी फायदे मिलते हों।
- इसके अलावा आर्टिकल 191 (1)(ए) और पब्लिक रिप्रेजेंटेटिव एक्ट के सेक्शन 9 (ए) के तहत भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट में सांसदों-विधायकों को अन्य पद लेने से रोकने का प्रोविजन है।
- संविधान की गरिमा के तहत ‘लाभ के पद’ पर बैठा कोई व्यक्ति उसी वक्त विधायिका का हिस्सा नहीं हो सकता।
बड़ा सवाल: क्या 21 नेताओं की विधायकी जाएगी?
- संविधान मामलों के एक्सपर्ट सुभाष कश्यप ने हाईकोर्ट के फैसले के बाद बताया था कि संसदीय सचिवों की नियुक्ति में दिल्ली सरकार ने एलजी से मंजूरी नहीं ली थी। इसलिए कोर्ट ने नियुक्तियों को रद्द किया है। हालांकि, अभी इनकी विधानसभा सदस्यता नहीं गई है, क्योंकि इलेक्शन कमीशन को यह फैसला लेना है कि संसदीय सचिव का पद ऑफिस ऑफ प्राॅफिट के दायरे में आता है या नहीं?
- कश्यप बताते हैं कि संविधान को जितना मैंने समझा है, उस हिसाब से ये पद ऑफिस ऑफ प्राफिट के दायरे में आता है। मेरी राय में इन 21 विधायकों की सदस्यता को पूरा खतरा है।
क्या है मामला
- दिल्ली विधानसभा में 70 में से 67 सीटों पर आम आदमी पार्टी के विधायक चुनकर आए थे। 13 मार्च 2015 को केजरीवाल सरकार ने अपने 21 विधायकों को पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी अप्वाइंट किया था।
- राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा के प्रेसिडेंट रवींद्र कुमार ने दिल्ली हाईकोर्ट में इन अप्वाइंटमेंट्स के खिलाफ पिटीशन दायर की थी। कुमार का कहना था कि ये अप्वाइंटमेंट्स गैरकानूनी हैं। सीएम के पास ऐसी नियुक्तियाें का अधिकार नहीं है।
- दिल्ली के एक एडवोकेट प्रशांत पटेल ने 19 जून 2015 को प्रेसिडेंट के पास पिटीशन फाइल की थी। इसमें विधायकों की बतौर पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी नियुक्ति को ऑफिस ऑफ प्रॉफिट (लाभ के पद) का मामला बताया था। पटेल ने इन 21 MLAs की मेंबरशिप रद्द करने की मांग की थी।
कब बिल लाई थी सरकार?
- इन अप्वाइंटमेंट्स पर विवाद बढ़ने के बाद दिल्ली सरकार 23 जून, 2015 को दिल्ली असेंबली में ऑफिस ऑफ प्रॉफिट एक्ट में अमेंडमेंट बिल लाई। इसे बिना बहस के पास करा लिया गया।
- बिल पास करा कर 24 जून 2015 को इसे लेफ्टिनेंट जनरल नजीब जंग के पास भेज दिया गया।
इसके बाद क्या हुआ?
- एलजी ने इस अमेंडमेंट बिल को प्रेसिडेंट के पास भेजा। प्रेसिडेंट ने इलेक्शन कमीशन से राय मांगी। इलेक्शन कमीशन ने पिटीशन लगाने वाले एडवोकेट से अपना जवाब दाखिल करने को कहा।
- जवाब में प्रशांत पटेल ने 100 पेज का जवाब दिया और बताया कि मेरे पिटीशन फाइल किए जाने के बाद असंवैधानिक तरीके से बिल लाया गया। इलेक्शन कमीशन एडवोकेट के जवाब से सैटिस्फाइ हुआ। इसके बाद प्रेसिडेंट ने बिल लौटा दिया।
दिल्ली हाईकोर्ट ने क्या कहा था?
सितंबर 2016 के अपने फैसले में हाईकोर्ट ने इन अप्वाइंटमेंट्स को रद्द कर दिया।कोर्ट ने अपने ऑर्डर में कहा कि नियमों को ताक पर रख कर ये अप्वाइंटमेंट्स किए गए थे।
ऑफिस ऑफ प्रॉफिट क्या होता है?
- कॉन्स्टिट्यूशन के आर्टिकल 102 (1) (ए) के तहत सांसद या विधायक ऐसे किसी और पद पर नहीं हो सकता, जहां अलग से सैलरी, अलाउंस या बाकी फायदे मिलते हों।
- इसके अलावा आर्टिकल 191 (1)(ए) और पब्लिक रिप्रेजेंटेटिव एक्ट के सेक्शन 9 (ए) के तहत भी ऑफिस ऑफ प्रॉफिट में सांसदों-विधायकों को अन्य पद लेने से रोकने का प्रोविजन है।
- संविधान की गरिमा के तहत ‘लाभ के पद’ पर बैठा कोई व्यक्ति उसी वक्त विधायिका का हिस्सा नहीं हो सकता।
बड़ा सवाल: क्या 21 नेताओं की विधायकी जाएगी?
- संविधान मामलों के एक्सपर्ट सुभाष कश्यप ने हाईकोर्ट के फैसले के बाद बताया था कि संसदीय सचिवों की नियुक्ति में दिल्ली सरकार ने एलजी से मंजूरी नहीं ली थी। इसलिए कोर्ट ने नियुक्तियों को रद्द किया है। हालांकि, अभी इनकी विधानसभा सदस्यता नहीं गई है, क्योंकि इलेक्शन कमीशन को यह फैसला लेना है कि संसदीय सचिव का पद ऑफिस ऑफ प्राॅफिट के दायरे में आता है या नहीं?
- कश्यप बताते हैं कि संविधान को जितना मैंने समझा है, उस हिसाब से ये पद ऑफिस ऑफ प्राफिट के दायरे में आता है। मेरी राय में इन 21 विधायकों की सदस्यता को पूरा खतरा है।