भोपाल ! नक्सल-हिंसा-नरसंहार समर्थन नहीं, उनके कुछ मुद्दे सही सशस्त्र लड़ाई तरीक़ा बिल्कुल सही नहीं ! विश्वभर में गोरिल्ला युद्ध-पद्धति से, जो कि नक्सली पद्धति है, लघुमति लड़ती है और आदिवासी इलाक़े में बहुमति है फिर भी नक्सलीयों ने यह पद्धति अपनाइ है, इसका मतलब है मूलत: यह लडाइ आदि वासीओं की या आदिवासीओ के लिये है ही नहीं, बिल्कुल नहीं ! नक्सलीयो के संगठन की सर्वोच्च संस्था Central Commety में 18 मेम्बर में से सिर्फ एक ही आदिवासी है । उसमें ज़्यादातर कौन ! फिर कौन इन साजिशों षड्यंत्रों के पीछे है । क्या आदिवासीओ के पास अपना कोई सक्षम नेता नहीं जो आदिवासी अधिकार के लिये लड़ सकें ? इसलिये तो इसमें भी कौन, चाल लगती है । फिर कौन इन साजिशों षड्यंत्रों के पीछे ? किस जाति के लोग हैं हर जगह घुस जाते है और हर जगह वे नेता ही बन जाते है । यही तो एक सुनियोजित षड्यंत्र है आदिवासी बहुल्य क्षेत्रों में है ! नक्सली युद्ध में अभी तक हमारे देश में 35000 से अधिक लोग अपनी जान गवाँ चुके है ! इससे क्या मिला ? छत्तीसगढ़ और झारखंड में आदिवासी आबादी 30% से कहीं अधिक है । इतनी आबादी वाला समाज आसानी से उन राज्य में अपनी सरकार बना सकता है । आदिवासी एसा न कर लें इसीलिये ही उनको इस युद्ध में उलझा दिया गया है । इन विस्तार में हिंसा रोककर लोकशाही तरीके से आदिवासी अधिकार के लिये लड़ा जा सकता है क्योंकि उन विस्तारों में तो आदिवासी बहुमत में है । लेकिन नक्सलवादी नेता एसा नहीं करते क्योंकि नक्सलवादी नेता तो आदिवासी है ही नहीं। वे आदिवासी विस्तार में चुनाव नहीं लड़ सकते, इसलिये बिना चुनाव लड़े नक्सलवाद से ही शासन हो सकता है ? आदिवासी छत्तीसगढ़ और झारंखंड में जल, जंगल और ज़मीन के लिये लड़ते है लेकिन उन राज्यों में उनकी आबादी के हिसाब से तो उन को समूचे छत्तीसगढ़ और झारखंड के लिये लडना चाहिए और लोकशाही पद्धति से यह काम संभव लगता है ।
"नक्सलियों के लिये लड़नेवाला सिपाही हमारा आदिवासी होता है और पुलिस में भी हमारे आदिवासी तैनात है, तो दोनों तरफ मरनेवाले तो आदिवासी ही है ।"
"नक्सलियों के नेता तो बड़े शहरों में अज्ञातवास में आराम से रहते है । उनको क्या तकलीफ़ होगी ?"
"नक्सली हिंसा की वजह से आदिवासी विस्तारों में शिक्षा और आरोग्य सेवाएँ बाधित होती है । अन्य कोइ विकास होने नहीं दिया जाता । इससे नुकसान तो आदिवासी को ही होगा ।"
अहिंसा की बात करने वाली कांग्रेस के शासन काल में हुआ था रूसी एयरक्राफ्ट से ही 17 दिसंबर 1995 की रात को पुरुलिया कस्बे में हथियार गिराए उन बक्सों में बुलगारिया में बनी 300 AK-4, AK-56 राइफल लगभग 15000 राउंड गोलियां कुछ मीडिया रिपोर्ट की संख्या इससे ज्यादा बताती है आधा दर्जन राकेट लांचर हथगोले पिस्तौल और अंधेरे में देखने वाले उपकरण शामिल थे !
मेरे विचार में आदिवासी लोकशाही तरीक़ों का संगठित होकर उपयोग करेंगे तो अपने विस्तार में शासन कर सकते है लोक शाही में जो संख्या चाहिए वह तो उनके पास है । इन क्षेत्रों में आदिवासी समाज की शक्ति को अलग अलग गुटो में बाँट दिया गया है । सशस्त्र युद्ध का तरीक़ा जो नकस्लीयो ने अपनाया है उससे सत्ता लेने के लिये तो उनको भारतीय सैन्य को पारंपरिक युद्ध में हराना पड़ेगा, जो नामुमकिन है । अगर नक्सलवादी को भारतकी लोकशाही पद्धति ही पसंद नहीं, तो उनकी पद्धति है "साम्यवाद" जो दुनियाभर में नाकामयाब हो रही है वह पद्धति आदि वासीओ को कैसे न्याय दिलायेगी ? भारतीय लोकशाही पद्धति में कुछ खामियां भले ही सही परंतु नक्सल का तरीका मानवीय हिंसा-नरसंहार, बिल्कुल गलत है जिसको अनदेखा कर स्वीकार नहीं किया जा सकता है ! यह पद्धति नक्सलवाद या अन्य कोइ भी माओवाद रशिया, चीन जैसे देश उसे नकार चुके है ! आशा करते है छत्तीसगढ़, झारखंड और अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों मे हिंसा का दौर ख़त्म हो और शांति बहाल हो ताकि इन विस्तार के आदिवासी अपना भविष्य अपनी इच्छाओं के अनुसार बना सके ।
राष्ट्र के महामहिम राष्ट्रपति, मा प्रधानमंत्री, मा. मंत्रीगण, मा. समस्त प्रदेशों के मुख्यमंत्री एवं उनके मंत्रीगण, मा. सर्वोच्च न्यायालय से अवकाश प्राप्त न्यायाधीश, भारतीय सेना के पूर्व पदाधिकारी, पूर्व आईएएस, पूर्व आईपीएस, अर्थशास्त्री-गण, विद्वान, मीडिया के प्रधान संपादक संपादक लेखक-पत्रकार, फिल्म जगत की महान हस्तियां, हमारे देश के प्रबुद्ध नागरिकों सहित संयुक्त राष्ट्र संघ को समझना होगा कि जो देश दुनिया में शांति और अमन की बात करते हैं हथियारों का कारोबार भी उन्हीं के देशों में होता है ! अवैध हथियारों के कारोबार और कमीशनखोरी से दुनिया खात्मे की ओर बढ़ रही है ! "हम कब तक यूं ही रहते आतंकवादी दंगा फसाद और नक्सलवादी गतिविधियों में काल के गाल में समाते-जान गवांते रहेंगे ! कहीं धर्म तू कहीं जात-पात के नाम पर हो रही है घर दुकान जलवाते रहेंगे ! *हिंदू, सिख, ईसाई हो या मुसलमान मरता तो सिर्फ इंसान गंभीरता से सोचिए !*
"अब तो वैचारिक द्वंद हैं "
@मो. तारिक (स्वतंत्र लेखक)
"नक्सलियों के लिये लड़नेवाला सिपाही हमारा आदिवासी होता है और पुलिस में भी हमारे आदिवासी तैनात है, तो दोनों तरफ मरनेवाले तो आदिवासी ही है ।"
"नक्सलियों के नेता तो बड़े शहरों में अज्ञातवास में आराम से रहते है । उनको क्या तकलीफ़ होगी ?"
"नक्सली हिंसा की वजह से आदिवासी विस्तारों में शिक्षा और आरोग्य सेवाएँ बाधित होती है । अन्य कोइ विकास होने नहीं दिया जाता । इससे नुकसान तो आदिवासी को ही होगा ।"
अहिंसा की बात करने वाली कांग्रेस के शासन काल में हुआ था रूसी एयरक्राफ्ट से ही 17 दिसंबर 1995 की रात को पुरुलिया कस्बे में हथियार गिराए उन बक्सों में बुलगारिया में बनी 300 AK-4, AK-56 राइफल लगभग 15000 राउंड गोलियां कुछ मीडिया रिपोर्ट की संख्या इससे ज्यादा बताती है आधा दर्जन राकेट लांचर हथगोले पिस्तौल और अंधेरे में देखने वाले उपकरण शामिल थे !
मेरे विचार में आदिवासी लोकशाही तरीक़ों का संगठित होकर उपयोग करेंगे तो अपने विस्तार में शासन कर सकते है लोक शाही में जो संख्या चाहिए वह तो उनके पास है । इन क्षेत्रों में आदिवासी समाज की शक्ति को अलग अलग गुटो में बाँट दिया गया है । सशस्त्र युद्ध का तरीक़ा जो नकस्लीयो ने अपनाया है उससे सत्ता लेने के लिये तो उनको भारतीय सैन्य को पारंपरिक युद्ध में हराना पड़ेगा, जो नामुमकिन है । अगर नक्सलवादी को भारतकी लोकशाही पद्धति ही पसंद नहीं, तो उनकी पद्धति है "साम्यवाद" जो दुनियाभर में नाकामयाब हो रही है वह पद्धति आदि वासीओ को कैसे न्याय दिलायेगी ? भारतीय लोकशाही पद्धति में कुछ खामियां भले ही सही परंतु नक्सल का तरीका मानवीय हिंसा-नरसंहार, बिल्कुल गलत है जिसको अनदेखा कर स्वीकार नहीं किया जा सकता है ! यह पद्धति नक्सलवाद या अन्य कोइ भी माओवाद रशिया, चीन जैसे देश उसे नकार चुके है ! आशा करते है छत्तीसगढ़, झारखंड और अन्य नक्सल प्रभावित क्षेत्रों मे हिंसा का दौर ख़त्म हो और शांति बहाल हो ताकि इन विस्तार के आदिवासी अपना भविष्य अपनी इच्छाओं के अनुसार बना सके ।
राष्ट्र के महामहिम राष्ट्रपति, मा प्रधानमंत्री, मा. मंत्रीगण, मा. समस्त प्रदेशों के मुख्यमंत्री एवं उनके मंत्रीगण, मा. सर्वोच्च न्यायालय से अवकाश प्राप्त न्यायाधीश, भारतीय सेना के पूर्व पदाधिकारी, पूर्व आईएएस, पूर्व आईपीएस, अर्थशास्त्री-गण, विद्वान, मीडिया के प्रधान संपादक संपादक लेखक-पत्रकार, फिल्म जगत की महान हस्तियां, हमारे देश के प्रबुद्ध नागरिकों सहित संयुक्त राष्ट्र संघ को समझना होगा कि जो देश दुनिया में शांति और अमन की बात करते हैं हथियारों का कारोबार भी उन्हीं के देशों में होता है ! अवैध हथियारों के कारोबार और कमीशनखोरी से दुनिया खात्मे की ओर बढ़ रही है ! "हम कब तक यूं ही रहते आतंकवादी दंगा फसाद और नक्सलवादी गतिविधियों में काल के गाल में समाते-जान गवांते रहेंगे ! कहीं धर्म तू कहीं जात-पात के नाम पर हो रही है घर दुकान जलवाते रहेंगे ! *हिंदू, सिख, ईसाई हो या मुसलमान मरता तो सिर्फ इंसान गंभीरता से सोचिए !*
"अब तो वैचारिक द्वंद हैं "
@मो. तारिक (स्वतंत्र लेखक)