भोपाल ! शहीद वीर जवान देश का सम्मान ! उनके प्राणों की आहुति और उनके खून की एक-एक बूंद का प्रतिशोध के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था अनुसार नैतिक मूल्यों का निर्वहन कर अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करें शासन और प्रशासन ! और ऐसा संभवत नहीं हुआ इसी कारण होते हैं नक्सलवाद क्षेत्रों में घटित होती है ऐसी घटनाएं और कोपभाजन बनते हैं हमारे वीर जवान ! सत्ता परिवर्तन होते रहने से भी नक्सलवाद रुका है विकराल रूप नहीं ले पाया, नहीं तो इसकी और भयावह तस्वीर होती है ! सिर्फ नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सर्जिकल स्ट्राइक समस्या का हल नहीं ! हां अगर लगता है कि लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं विफल तो 10 नहीं 50 मारो !
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सिर्फ सर्जिकल स्ट्राइक की बात बेमानी होगी या यूँ कहां जाये जो पडोसी देश के साथ करा वो नहीं जनाब वो गैर यह हमारे अपने हैं बस सही तरह से मनाये ! जो उनके हिस्से का उनहें दीजिये बस बहुत हुआ अब मलाई नहीं खाईये ! खाये पिये को मारा जाये भूखे, नंगे, अशिक्षित तो नक्सलवाद के ठेकेदारों के श्रमिक हैं और ठेकेदार उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड, तमिलनाड, दिल्ली या कहीं किसी राज्य के बंगला नुमा आलीशान मकान में एसी में आराम से टीवी पर समाचार प्रासारण की प्रतिक्षा !
नक्सलवाद या देश में बढ़ रहें आपराधिक मामलों के लिए बयानबाजी यहां सब कर रहे हैं तो इस अपराधों की ज़िम्मेदार वो जिन्होंने देश की आज़ादी को अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए ही भुनाया जिसमे पूँजीवाद, छेत्रिय राजनीत, अधिकारी हों या कर्मचारी सभी की हैं बराबर की भागीदारी।
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"नाम ओ निशान उनका मिट गया जिनहोने कहा था हम दिल्ली से 1 रूपिया भेजते हैं तो 25 पैसे आप तक पहूँचते हैं बस फिर क्या था इमानदार मतदाताओं ने नहीं तो फिर किसने उसी नेता के दल को सत्ता से उखाड़ फैंका !"
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देश में किसान आत्महत्या कर रहे हैं मीडिया और राजनीतिक दल हु-हल्लाह कर रहे हैं ! कभी उनके भी बारे में सोचा जो जो सड़क मुख्य मार्ग से 50-100 किलोमीटर अंदर सिर्फ जंगलों में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं और वनों-उपज पर ही अपना गुजारा कर रहे हैं ! शिक्षा, स्वास्थ, रोजगार और विकास हौना चाहिये इसी के साथ नक्सल समर्थित - हां समस्त राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं को हिदायत दे कि वह उनका समर्थन उनके लिए दलाली बंद कर दे ! कार्यकरता और नेता गणो को सख्त हिदायत दी जाये !
देश की आज़ादी के बीते 70 वर्ष फिर भी बंद नहीं हुई स्वार्थ की राजनीति। देश की जनता को लोकतंत्र पर विश्वास के साथ विकास, शिक्षा व रोज़गार की आवशयकता हैं। उसके लिए जन-प्रतिनिधियों सहित अधिकारी से लेकर चपरासी तक ही नहीं प्रत्येक नागरिक को द्रण-संकल्प लेना होगा वरना लोग तो धर्म-जात पर बांटते रहें हैं और बांटते ही रहेंगे !
"सोंचे कुछ उपाय न बहे अब मानवीय लहू"
न हों कोई बंदरबांट।
"हमें गर्व है शहीद वीर जवान देश का सम्मान!
"अब तो वैचारिक द्वंद है" !
मो. तारिक (स्वतंत्र लेखक)
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सिर्फ सर्जिकल स्ट्राइक की बात बेमानी होगी या यूँ कहां जाये जो पडोसी देश के साथ करा वो नहीं जनाब वो गैर यह हमारे अपने हैं बस सही तरह से मनाये ! जो उनके हिस्से का उनहें दीजिये बस बहुत हुआ अब मलाई नहीं खाईये ! खाये पिये को मारा जाये भूखे, नंगे, अशिक्षित तो नक्सलवाद के ठेकेदारों के श्रमिक हैं और ठेकेदार उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड, तमिलनाड, दिल्ली या कहीं किसी राज्य के बंगला नुमा आलीशान मकान में एसी में आराम से टीवी पर समाचार प्रासारण की प्रतिक्षा !
नक्सलवाद या देश में बढ़ रहें आपराधिक मामलों के लिए बयानबाजी यहां सब कर रहे हैं तो इस अपराधों की ज़िम्मेदार वो जिन्होंने देश की आज़ादी को अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए ही भुनाया जिसमे पूँजीवाद, छेत्रिय राजनीत, अधिकारी हों या कर्मचारी सभी की हैं बराबर की भागीदारी।
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"नाम ओ निशान उनका मिट गया जिनहोने कहा था हम दिल्ली से 1 रूपिया भेजते हैं तो 25 पैसे आप तक पहूँचते हैं बस फिर क्या था इमानदार मतदाताओं ने नहीं तो फिर किसने उसी नेता के दल को सत्ता से उखाड़ फैंका !"
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देश में किसान आत्महत्या कर रहे हैं मीडिया और राजनीतिक दल हु-हल्लाह कर रहे हैं ! कभी उनके भी बारे में सोचा जो जो सड़क मुख्य मार्ग से 50-100 किलोमीटर अंदर सिर्फ जंगलों में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं और वनों-उपज पर ही अपना गुजारा कर रहे हैं ! शिक्षा, स्वास्थ, रोजगार और विकास हौना चाहिये इसी के साथ नक्सल समर्थित - हां समस्त राजनीतिक दल अपने कार्यकर्ताओं को हिदायत दे कि वह उनका समर्थन उनके लिए दलाली बंद कर दे ! कार्यकरता और नेता गणो को सख्त हिदायत दी जाये !
देश की आज़ादी के बीते 70 वर्ष फिर भी बंद नहीं हुई स्वार्थ की राजनीति। देश की जनता को लोकतंत्र पर विश्वास के साथ विकास, शिक्षा व रोज़गार की आवशयकता हैं। उसके लिए जन-प्रतिनिधियों सहित अधिकारी से लेकर चपरासी तक ही नहीं प्रत्येक नागरिक को द्रण-संकल्प लेना होगा वरना लोग तो धर्म-जात पर बांटते रहें हैं और बांटते ही रहेंगे !
"सोंचे कुछ उपाय न बहे अब मानवीय लहू"
न हों कोई बंदरबांट।
"हमें गर्व है शहीद वीर जवान देश का सम्मान!
"अब तो वैचारिक द्वंद है" !
मो. तारिक (स्वतंत्र लेखक)