मथुरा. यहां के एक गांव में सोमवार की अल सुबह
होली की अनोखी परंपरा
हुई। प्रह्लाद की तरह 30 फीट
चौड़ी धधकती आग में बाबूलाल पंडा नाम
का एक शख्स कूद गया। हालांकि आग में कूदने के बाद बाबूलाल
को कुछ नहीं हुआ। कूदने की वजह
उन्होंने खुद पर प्रह्लाद आने को बताया। बताया कि उनका
कौशिक परिवार सदियों से ये परंपरा निभा रहा है। मन में प्रह्लाद
नाम जप रहा था...
- मामला मथुरा से 50 किमी दूर
कोसीकलां इलाके के फालैन गांव का है। इस अनोखे
रिवाज के देखने के लिए हजारों लोग जमा थे।
- गांव में प्रह्लाद मंदिर के बाहर 30 फीट
चौड़ी होलिका सजाई गई। इसी के बगल
में प्रह्लाद कुंड है।
- मंदिर में बाबूलाल, प्रह्लाद की पूजा में कर रहे
थे। वह मन में लगातार प्रह्लाद नाम जप रहे थे।
- रविवार रात दो बजे लोग जुटने लगे। सुबह चार बजे तक
खचाखच भीड़ हो गई।
- सुबह साढ़े चार बजे बाबूलाल, मंदिर से बाहर निकले। उन्होंने
होलिका की पूजा की।
- इसके तुरंत बाद ग्रामीणों ने होलिका में आग लगा
दी। आग की लपटें करीब
तीस फीट ऊंची उठने
लगीं।
- इस दौरान बाबूलाल की बहन उन्हें प्रह्लाद कुंड
तक ले गई। यहां बाबूलाल ने डुबकी लगाई और
दौड़ते हुए जलती हुई होलिका में कूद गए।
- जब वह आग के बाहर निकले, तो ग्रामीणों ने
उन्हें लपक लिया। इसके बाद उन्होंने होलिका की
परिक्रमा की और घर चले गए।
ऐसे की आग में कूदने की
तैयारी
- कौशिक परिवार के बाबूलाल जलती होली
में कूदने के लिए वसंत पंचमी से मंदिर में रह रहे
थे।
- इस दौरान उन्होंने अन्न छोड़ दिया। पानी और फल
का सेवन करते रहे।
- बाबूलाल धधकती होलिका में कूदने के दौरान कंधे
पर एक गमछा, गले में माला, सिर पर पगड़ी और
धोती पहने हुए थे।
- उन्होंने बताया कि उनका कौशिक परिवार सदियों से यह परंपरा
निभा रहा है।
नहीं हुआ नुकसान
- बाबूलाल धधकती हुई आग में कूदकर बाहर
निकल गए, लेकिन उन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ।
- उन्होंने अपना पैर दिखाया और कहा कि पैर में राख
की कालिख लग गई है। इसके अलावा कोई दिक्कत
नहीं हुई।
- पंडा ने बताया कि जब वह मंदिर में भगवान भक्त प्रह्लाद
का जप कर रहे थे, तभी प्रह्लाद उनपर आ गए।
इसी वजह से कुंड में डुबकी लगाकर
आग में कूद गए।
एक साधु के आशीर्वाद से शुरू हुई परंपरा
- इस गांव में गोपालजी मंदिर के संत रामानुज दास ने
बताया कि कुछ सौ साल पहले गांव में एक साधु ने तपस्या
की थी।
- साधु को सपने में पेड़ के नीचे एक मूर्ति दिखाई
दी। अगले दिन उसने कौशिक परिवार से
उसी जगह पर खुदाई करवाई।
- खुदाई में इस जगह से भगवान नरसिंह और भक्त प्रह्लाद
की प्रतिमा निकली। इन प्रतिमाओं को
उसी जगह पर मंदिर बनाकर स्थापित कर दिया गया।
- इसी दौरान साधु ने कौशिक परिवार को
आशीर्वाद दिया था कि अगर उनके परिवार के सदस्य
शुद्ध मन से पूजा करके जलती हुई होलिका से
गुजरेंगे तो उन्हें आग का असर नहीं होगा। आग में
कूदने वाले व्यक्ति को प्रह्लाद की तरह आग
की लपटें नुकसान नहीं
पहुंचाएंगी।
- कौशिक परिवार के 6 सदस्य धधकती आग से
निकलने की परंपरा निभा चुके हैं।
पिछली बार जलती होलिका में कूदे थे
हीरालाल पंडा
- पिछली होली में हीरालाल
पंडा जलती हुई होलिका में कूदकर
सही-सलामत बाहर निकल आए थे।
- उस दौरान केवल पैर का कुछ हिस्सा जल गया था। इसके बाद
भी वह पैदल चलते हुए घर पहुंचे।
- हीरालाल ने बताया कि जलती होलिका में
कूदते समय उन्हें आग की तपिश का एहसास
नहीं हुआ। आग ठंडी
लगी, जबकि जमीन गर्म।
होली की अनोखी परंपरा
हुई। प्रह्लाद की तरह 30 फीट
चौड़ी धधकती आग में बाबूलाल पंडा नाम
का एक शख्स कूद गया। हालांकि आग में कूदने के बाद बाबूलाल
को कुछ नहीं हुआ। कूदने की वजह
उन्होंने खुद पर प्रह्लाद आने को बताया। बताया कि उनका
कौशिक परिवार सदियों से ये परंपरा निभा रहा है। मन में प्रह्लाद
नाम जप रहा था...
- मामला मथुरा से 50 किमी दूर
कोसीकलां इलाके के फालैन गांव का है। इस अनोखे
रिवाज के देखने के लिए हजारों लोग जमा थे।
- गांव में प्रह्लाद मंदिर के बाहर 30 फीट
चौड़ी होलिका सजाई गई। इसी के बगल
में प्रह्लाद कुंड है।
- मंदिर में बाबूलाल, प्रह्लाद की पूजा में कर रहे
थे। वह मन में लगातार प्रह्लाद नाम जप रहे थे।
- रविवार रात दो बजे लोग जुटने लगे। सुबह चार बजे तक
खचाखच भीड़ हो गई।
- सुबह साढ़े चार बजे बाबूलाल, मंदिर से बाहर निकले। उन्होंने
होलिका की पूजा की।
- इसके तुरंत बाद ग्रामीणों ने होलिका में आग लगा
दी। आग की लपटें करीब
तीस फीट ऊंची उठने
लगीं।
- इस दौरान बाबूलाल की बहन उन्हें प्रह्लाद कुंड
तक ले गई। यहां बाबूलाल ने डुबकी लगाई और
दौड़ते हुए जलती हुई होलिका में कूद गए।
- जब वह आग के बाहर निकले, तो ग्रामीणों ने
उन्हें लपक लिया। इसके बाद उन्होंने होलिका की
परिक्रमा की और घर चले गए।
ऐसे की आग में कूदने की
तैयारी
- कौशिक परिवार के बाबूलाल जलती होली
में कूदने के लिए वसंत पंचमी से मंदिर में रह रहे
थे।
- इस दौरान उन्होंने अन्न छोड़ दिया। पानी और फल
का सेवन करते रहे।
- बाबूलाल धधकती होलिका में कूदने के दौरान कंधे
पर एक गमछा, गले में माला, सिर पर पगड़ी और
धोती पहने हुए थे।
- उन्होंने बताया कि उनका कौशिक परिवार सदियों से यह परंपरा
निभा रहा है।
नहीं हुआ नुकसान
- बाबूलाल धधकती हुई आग में कूदकर बाहर
निकल गए, लेकिन उन्हें कोई नुकसान नहीं हुआ।
- उन्होंने अपना पैर दिखाया और कहा कि पैर में राख
की कालिख लग गई है। इसके अलावा कोई दिक्कत
नहीं हुई।
- पंडा ने बताया कि जब वह मंदिर में भगवान भक्त प्रह्लाद
का जप कर रहे थे, तभी प्रह्लाद उनपर आ गए।
इसी वजह से कुंड में डुबकी लगाकर
आग में कूद गए।
एक साधु के आशीर्वाद से शुरू हुई परंपरा
- इस गांव में गोपालजी मंदिर के संत रामानुज दास ने
बताया कि कुछ सौ साल पहले गांव में एक साधु ने तपस्या
की थी।
- साधु को सपने में पेड़ के नीचे एक मूर्ति दिखाई
दी। अगले दिन उसने कौशिक परिवार से
उसी जगह पर खुदाई करवाई।
- खुदाई में इस जगह से भगवान नरसिंह और भक्त प्रह्लाद
की प्रतिमा निकली। इन प्रतिमाओं को
उसी जगह पर मंदिर बनाकर स्थापित कर दिया गया।
- इसी दौरान साधु ने कौशिक परिवार को
आशीर्वाद दिया था कि अगर उनके परिवार के सदस्य
शुद्ध मन से पूजा करके जलती हुई होलिका से
गुजरेंगे तो उन्हें आग का असर नहीं होगा। आग में
कूदने वाले व्यक्ति को प्रह्लाद की तरह आग
की लपटें नुकसान नहीं
पहुंचाएंगी।
- कौशिक परिवार के 6 सदस्य धधकती आग से
निकलने की परंपरा निभा चुके हैं।
पिछली बार जलती होलिका में कूदे थे
हीरालाल पंडा
- पिछली होली में हीरालाल
पंडा जलती हुई होलिका में कूदकर
सही-सलामत बाहर निकल आए थे।
- उस दौरान केवल पैर का कुछ हिस्सा जल गया था। इसके बाद
भी वह पैदल चलते हुए घर पहुंचे।
- हीरालाल ने बताया कि जलती होलिका में
कूदते समय उन्हें आग की तपिश का एहसास
नहीं हुआ। आग ठंडी
लगी, जबकि जमीन गर्म।